ये क़िस्सा लगातार दो दिनों में लिख कर दर्ज किया था फ़ेसबुक पर , आज ये आ रहा है ब्लॉग पर ।
भाग एक :
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जनता स्टोर पर : कल की बात
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चलताऊ तौर पर सब्जी तो खरीद ली इन लड़कों के पास और बराबर में सीढ़ी चढ़ गया फल वाले की दूकान में . मीठे फल खाना तो आजकल मने है तो ले दे के दो चीज कुल दे देने को कहा छोरे को :
1 फालसा
2 आलू बुखारा वो भी कच्चा खट्टा
छोरे को फुरसत कहां मुझे अटेंड करने को वो अटका हुआ एक सजीली युवती के आर्डर की तामील में और उसे ," भाभी जी , भाभी जी " कहे जाय . मुझे एक दम सीरियल का सा माहोल लगा ," भाभी जी घर पर हैं ." चल रहा हो मानो .
अब तब तो मैं चुप रहा युवती के सामने , वो क्या सोचती वरना और उसके सीढ़ी उतरते ही मैं जो बोला वो जान लीजिए :
" इत्ती देर से भाभी जी भाभी जी करे जा रिया है
और यहां तेरे ताऊ खड़े हैं उनकी कोई परवाह ही नहीं ? "
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टी ब्रैक .
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इत्ता ही लिखा था उस दिन तो पर फिर उत्सुकता जाग गई कि फिर क्या हुआ । इसी उत्सुकता का समाधान करने को दूसरा भाग लिखा था अगले दिन जो अविकल यहां दोहराता हूं । ये रहा :
भाग दूसरा :
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जनता स्टोर : कल की बात ...और आगे .
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अब तो ये परसों की बात हो गई पर बात कहते कहते मजबूरी में रुकना पड़ा था तो आगे की बात तो बतानी ही पड़ेगी न इस लिए छेड़ी है ये बात फिर से .
बात तो कुल जमा इत्ती सी ही थी कि फल वाला छोरा भाभी जी - भाभी जी करे जाय और अपण को पूछे ही नहीं और तब लपकाया मैंने "......यहां तेरे ताऊ खड़े हैं उनकी कुछ परवाह ही नहीं ? " 💐 खैर छोरा आया लाइन पे , पहले का कहा भूलकर फिर पूछने लगा :
" क्या देऊं बाबूजी ? "
और बाबूजी ने जारी किया फरमान :
" ढाई सौ ग्राम फालसा दे और दे , ढाई सौ ग्राम दे आलू बुखारा . "
खैर
तौल दिए लडके ने मैंने अस्सी रूपए चुकाए पर एक बात भी हुई ही इस लेन देन के दौरान , उसे इस संवाद में बाबूजी की कुछ " असहिष्णुता " लगी शायद सो एक बेतुका सा सवाल पूछ बैठा
क्या पूछता है :
" बाबूजी आप के बच्चे नहीं हैं क्या ? "
और अब बाबूजी के बिफरने की बारी थी , बोले बाबूजी :
" अरे अकल के कोल्हू ! मेरे बच्चे कोई न्यारे हैं क्या ? तुम्ही तो हो मेरे बच्चे ! "
अब लड़का मेरा मिजाज समझ चुका था और मुझे याद आ रहा था कि मेरे कार्यस्थल पर स्थानीय कार्यकर्ता मेरे लिए कहते :
" ये ही छै बेवारस्यां का बाप . "
खैर ये छोटा सौदा तो निबट गया , दूसरे वाले लडके ने सीढ़ी उतरने के लिए मुझे सपोर्ट दिया और मैं जनता स्टोर चौक में नीचे आ गया पर अब भी एक संवाद होना बाकी था .
एक और बात :
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एक बुजुर्ग सज्जन मिले , तुरंत मैंने पूछा :
" आप तो सीनियार सिटीजन हैं ? "
मैंने पूछा था कि भाई एक संयुक्त मोर्चा बन जाए .
उन्होंने तस्दीक तो कर दी पर मेरी ओर कौतुक से देखने लगे और मैंने उनकी उत्सुकता शांत की :
"....।फिर क्या बात , मिलाओ हाथ ! "
अब वो मेरा शुभ नाम पूछने लगे खैर वो ही बात मैंने पूछी और वो निकले हेमंत पाटनी , जे डी ए के सामने रहते बताए .
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टी ब्रैक .
सुप्रभात .
आगे चलेगी अभी बात .
गए बरस की स्मृतियों पर आधारित बातों को जोड़कर आज दिन दिल्ली में बनाई ये पोस्ट और इसे अब ब्लॉग पर प्रकाशित करने जा रहा हूं ।
गुरुवार २५ मई २०१७ ।
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जयपुर डायरी
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