Wednesday, 24 May 2017

क़िस्सा जनता स्टोर का : जयपुर ड़ायरी - स्मृतियों के चल चित्र 

ये क़िस्सा लगातार दो दिनों में लिख कर दर्ज किया था फ़ेसबुक पर  , आज ये आ रहा है ब्लॉग पर ।

भाग एक :

----------

जनता स्टोर पर : कल की बात

   ************************ 

  चलताऊ तौर पर सब्जी तो खरीद ली इन लड़कों के पास और बराबर में सीढ़ी चढ़ गया फल वाले की दूकान में . मीठे फल खाना तो आजकल मने है तो ले दे के दो चीज कुल दे देने को कहा छोरे को :

1 फालसा

2 आलू बुखारा वो भी कच्चा खट्टा 


छोरे को फुरसत कहां मुझे अटेंड करने को वो अटका हुआ एक सजीली युवती के आर्डर की तामील में और उसे ," भाभी जी , भाभी जी " कहे जाय . मुझे एक दम सीरियल का सा माहोल लगा ," भाभी जी घर पर हैं ." चल रहा हो मानो . 

अब तब तो मैं चुप रहा युवती के सामने , वो क्या सोचती वरना और उसके सीढ़ी उतरते ही मैं जो बोला वो जान लीजिए :

" इत्ती देर से भाभी जी भाभी जी करे जा रिया है 

और यहां तेरे ताऊ खड़े हैं उनकी कोई परवाह ही नहीं ? " 

*****

टी ब्रैक .

----------------

इत्ता ही लिखा था उस दिन तो पर फिर उत्सुकता जाग गई कि फिर क्या हुआ  । इसी उत्सुकता का समाधान करने को दूसरा भाग लिखा था अगले दिन जो अविकल यहां दोहराता हूं । ये रहा :

भाग दूसरा :

------------

जनता स्टोर : कल की बात ...और आगे .

**********************  

अब तो ये परसों की बात हो गई पर बात कहते कहते मजबूरी में रुकना पड़ा था तो आगे की बात तो बतानी ही पड़ेगी न इस लिए छेड़ी है ये बात फिर से .


बात तो कुल जमा इत्ती सी ही थी कि फल वाला छोरा भाभी जी - भाभी जी करे जाय और अपण को पूछे ही नहीं और तब लपकाया मैंने "......यहां तेरे ताऊ खड़े हैं उनकी कुछ परवाह ही नहीं ? " 💐 खैर छोरा आया लाइन पे , पहले का कहा भूलकर फिर पूछने लगा :


" क्या देऊं बाबूजी ? "


और बाबूजी ने जारी किया फरमान :


" ढाई सौ ग्राम फालसा दे और दे , ढाई सौ ग्राम दे आलू बुखारा . "

खैर

तौल दिए लडके ने मैंने अस्सी रूपए चुकाए पर एक बात भी हुई ही इस लेन देन के दौरान , उसे इस संवाद में बाबूजी की कुछ " असहिष्णुता " लगी शायद सो एक बेतुका सा सवाल पूछ बैठा 

क्या पूछता है :


" बाबूजी आप के बच्चे नहीं हैं क्या ? "


और अब बाबूजी के बिफरने की बारी थी , बोले बाबूजी :


" अरे अकल के कोल्हू ! मेरे बच्चे कोई न्यारे हैं क्या ? तुम्ही तो हो मेरे बच्चे ! "


अब लड़का मेरा मिजाज समझ चुका था और मुझे याद आ रहा था कि मेरे कार्यस्थल पर स्थानीय कार्यकर्ता मेरे लिए कहते :


" ये ही छै बेवारस्यां का बाप . "


खैर ये छोटा सौदा तो निबट गया , दूसरे वाले लडके ने सीढ़ी उतरने के लिए मुझे सपोर्ट दिया और मैं जनता स्टोर चौक में नीचे आ गया पर अब भी एक संवाद होना बाकी था .


एक और बात :

*********** 😊

एक बुजुर्ग सज्जन मिले , तुरंत मैंने पूछा :


" आप तो सीनियार सिटीजन हैं ? "


मैंने पूछा था कि भाई एक संयुक्त मोर्चा बन जाए .


उन्होंने तस्दीक तो कर दी पर मेरी ओर कौतुक से देखने लगे और मैंने उनकी उत्सुकता शांत की :


"....।फिर क्या बात , मिलाओ हाथ ! "


अब वो मेरा शुभ नाम पूछने लगे खैर वो ही बात मैंने पूछी और वो निकले हेमंत पाटनी , जे डी ए के सामने रहते बताए .

***


टी ब्रैक .


सुप्रभात .


आगे चलेगी अभी बात .

गए बरस की स्मृतियों पर आधारित बातों को जोड़कर आज दिन दिल्ली में बनाई ये पोस्ट और इसे अब ब्लॉग पर प्रकाशित करने जा रहा हूं ।

गुरुवार २५ मई २०१७ ।

----------------------



1 comment: