Saturday, 6 May 2017

पापा वाली सब्ज़ी : बनस्थली डायरी 

छोटा वाला मेरे थक्के 😊😊 बनस्थली डायरी 


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ये तब की बात है जब बनस्थली में थे , जीवन संगिनी किसी कारण बाहर थी और घर में हम दो - बाप बेटे ही थे , मैं और छोटा वाला . दोनों के भोजन की व्यवस्था मेरे ही जिम्मे थी . बच्चे को लगातार साथ रखना और अपना पढने पढ़ाने का काम भी करना . उसी बाबत छोटी छोटी बातें हैं :


बात दोपहर के भोजन की :

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 सब्जी के नामपर खूब सारे मटर भिगो कर गया था . जब दोपहर का खाना बनाने की बारी आई तो कुकर में वो ही मटर उबाले गए , अल्प मात्रा में थोड़े टमाटर और भांति भांति के मसालों के साथ शोरबे वाली सब्जी छोंक कर तैयार कर दी और बना डाली अपनी जरूरत की रोटियां .

खाने बैठे चौक वाले बरामदे में , यहां दोपहर को घूप आ जाया करती थी जो सर्दी के मौसम में बड़ी अच्छी लगती थी . मौसम भी सर्दी का ही था .

भूख भी जोर की लगी थी दोनों को . खाने बैठे तो सिलसिला शुरु हुआ .


सब्जी कैसी लगी ? मैंने पूछा.

बहुत स्वादिष्ट है पापा . बेटा बोला .


असल में भूख में भोज्य पदार्थ स्वादिष्ट ही लगता है पर था भी सब कुछ संतुलित ये बात भी सही है . मेरा खाना बनाना उस बखत सफल हो गया लगा जब भोजन के दौरान बेटा बोला :


" पापा थोड़ा शोरबा और मिल सकता है क्या ?"

मैं बोला ," खूब सारा ले , अपन को खा कर ख़तम ही करना है ये सब कुछ ."

 फिर तो आगे भी बेटे ने मां को बताया कि मैंने उस दिन उसके लिए सब्जी बड़ी बढ़िया बनाई थी .

आगे आगे यह भी हुआ कि वो मटर की शोरबे वाली सब्जी घर में पापा वाली सब्जी कहलाई और जीवन संगिनी ने भी ये सब्जी बनाने का प्रभार कई एक बार मुझ पर ये कह कर डाल दिया , " पापा वाली सब्जी तो पापा ही बनाएंगे ."

आज वो छोटा वाला पाक कला में पारंगत हो गया , उसके बनाए भरवां टिंडों की दिल्ली में चर्चा होती है , पर मुझे तो उसका ये ही भोला सा कथन याद आ जाता है :


"पापा, थोड़ा शोरबा और मिल सकता है क्या ?"


धन्य जीवन संगिनी जो ये कहकर रसोई से बाहर हो जाएं कि,


"अब पापा वाली सब्जी तो पापा ही बनाएंगे ."

जय हो . जीवन संगिनी   मंजु पंड़्या ।


सुप्रभात .


सुमन्त पंड्या .

(Sumant Pandya)

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

7 मई 2015 .

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😊😊

आज फिर अपडेट जयपुर से -

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दिनांक 7 मई 2016 .

ये बातें फिर फिर याद करना बहुत अच्छा लगता है .

इसे सहेजना है और बनस्थलीडायरी के अंतर्गत प्रकाशित करना है ब्लॉग पर भी और प्रोफाइल पर भी .

कहने की आवश्यकता नहीं कि इस लेख से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं वो टिप्पणियां जो इस बाबत आप लोगों ने अंकित की .

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सुमन्त पंड्या .

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर 

शनिवार 7 मई 2016 .

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दो बरस पहले भिवाड़ी में थे तब लिखी थी ये पोस्ट । गए बरस जयपुर में थे आज के दिन तब इस पोस्ट को दोहराया भी था । आज के दिन इत्तफ़ाक़ से जब छोटे वाले के पास दिल्ली आए हुए हैं तो फ़ेसबुक ने ये बात फिर याद दिलाई है तारीख़ के हिसाब से । अब इसे ब्लॉग पर पोस्ट किए देता हूं ।

दिल्ली  

रविवार ७ मई २०१७ ।

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