बात की बात : ई एम एस नम्बूदरीपाद .
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कोई बात देख सुनकर पुरानी बात याद आ जाती है . अगर आज के बच्चों की शब्दावली में कहूं तो बात हैश टैग (#Tag.) हो जाती है , ऐसी ही बात की बात बताता हूं . कल की ही बात है :
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जीवन संगिनी टी वी के सामने बैठी कोई कार्यक्रम देख रही थी . अब ये तो मुझे पता नहीं कोई सीरियल था या कहानी थी पर मैं भी कंपनी देने को थोड़ी देर को बैठ गया . मामला एक लड़की का था और विवाह का प्रसंग विचारार्थ आ गया था . लड़की बोलने में हकलाती थी और इसी नाते बात कुछ अटक रही थी , लेकिन बावजूद इस वक्तृत्व कौशल सीमा के उसका आत्म विशवास देखते ही बनता था . मैं दो कारण से उससे अपनत्व अनुभव कर रहा था . एक तो बेटी और दूसरे उसका हैंडीकैप .
पर हुआ कुछ ऐसा कि पिता की इस बेटी ने ऐसी हिमायत की जो शायद और कोई न कर पाता .
मैं बेटी जात का हिमायती हूं ये तो बताने की शायद आवश्यकता नहीं है , मैं हमेशा यह भी कहता हूं कि किसी के हैंडीकैप का मज़ाक मत उड़ाओ , मजाक उड़ाने वालों से मैं हमेशा भिड़ जाता हूं कि समझते क्या हो तुम्हारा हैंडीकैप मैं तुम्हें बताऊंगा . आपने यह भी पाया होगा कि मां बाप को हमेशा ही अपने हैंडीकैप बच्चे से सबसे अधिक प्यार होता है और अगर नहीं होता है तो मैं ऐसे मां बाप को मां बाप कहलाने के लिए लायक ही नहीं मानता . खैर ये विचार तो मेरे अपने हैं किसी के लिए इनको मानना लाजिमी नहीं है . खैर , कल की बात से जो पुरानी बात याद आती है वो बताता हूं .......
राजनीति शास्त्र विभाग , राजस्थान विश्वविद्यालय :
मैं वहां पढ़ा करता था , विभाग के संस्थापक अध्यक्ष और मेरे भी गुरु डाक्टर एस पी वर्मा इस बात को बड़े गर्व से कहा करते थे कि शायद ही कोई ऐसा नामी राजनीति शास्त्र का विद्वान बचा होगा जो विभाग में आया न हो और इस मंच से बोला न हो . इस विभाग में भाषण देने का निमंत्रण राजनेता भी ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते थे और खुल कर बात होती थी . इसी सन्दर्भ में मुझे याद आते हैं ई एम एस नम्बूदरीपाद जो विभाग में भाषण देने आए थे . लुंगी और बुश्शर्ट कहा जाने वाला कमीज और गांधी जी जैसी चप्पल पहने विभाग के एक नंबर थियेटर में रॉसट्रम के पीछे खड़े होकर बोलते नम्बूदरीपाद मुझे आज भी याद हैं .
क्यों आई ये बात याद ?
मुझे तो तो उस लड़की की बात पर याद आए ई एम एस .
वो भी हकलाते थे , लेकिन अपनी इस कमजोरी को वो किसी भी प्रकार से हीनता ग्रंथी का कारण बनने देने को तैयार नहीं थे , विभाग में भी जब वो बोले थे तो उनकी बात को सबने शान्ति पूर्वक सुना था . उनकी बात में दम था . उनके तर्क में दम था .
उपसंहार :
एक बार की बात , सिर्फ उन्हें सताने को किसी अकल से पैदल पत्रकार ने ई एम एस से पूछ लिया :
" सर ! डू यू ऑलवेज स्टैमर ....?"
जवाब में बोले ई एम एस और तपाक से बोले , पूरे आत्म विशवास से बोले :
" नो ओ ओ....."
"ओनली व्हेन आई स्पी अ अ क ."
इससे बढ़िया जवाब क्या हो सकता था भला?
प्रातःकालीन सभा अनायास स्थगित .
इति .
सुप्रभात
सुमन्त पंड़्या
गुलमोहर कैम्प , जयपुर .
31 मई 2015 .
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पुराना संस्मरण है ।
आज दिन जयपुर से ब्लॉग पर प्रकाशित ।
बुधवार ३१ मई २०१७ ।
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नमस्ते सर...सच में इस से बढ़िया जवाब हो ही नही सकता..और प्रसंग का इस से बढ़िया विवरण भी नही हो सकता..:)
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