Thursday, 25 May 2017

बातें बनस्थली की : वीर पुरुष का  दर्जा  😎

बातें बनस्थली की : वीर पुरुष का दर्जा: डाक्टर लाल चंद जैन . 💐💐

________________________________  बनस्थलीडायरी 


डाक्टर लाल चंद जैन होने को तो हिंदी विभाग में रहे पर रवीन्द्र निवास की सायंकालीन सभाओं में ये विभागों का भेदाभेद नहीं होता था और अरविन्द निवास से चलकर जब वो हमारी सभा में आते तो उन्हें विशिष्ट अतिथि या मुख्य अतिथि का दर्जा दिया जाता . कभी कभी मैं आगे बढ़कर सभा की अध्यक्षता के लिए भी उनका नाम प्रस्तावित कर देता और वो बात हमेशा ही मान भी ली जाती . हंसी के ठहाके के मामले में उनकी जोड़ी का परिसर में कोई नहीं था .

हमेशा खादी के सफ़ेद कमीज और पैन्ट पहनते . सर्दी के मौसम के लिए मरीनो ऊन के शाल से बनाया गया सूट पहनते और बचे हुए कपडे का बनवाया हुआ मफलर लगाना उनका ख़ास स्टाइल था .

आजकल वे अलवर में रहते हैं , मेरा अलवर से नाता तो जग जाहिर है , गया तब उनसे भी मिलकर आया था .

अभी भी वही नूर बरकारार है , उनकी पूर्व छात्राओं की सूचनार्थ ये बात दर्ज की है .


एक ख़ास बात :

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बनस्थली में विश्वविद्यालयों के बालीबाल टूर्नामेंट हो रहे थे . जाने किस तुफैल में मैं भी उसकी बुलेटिन बनाने वाली कमेटी में सम्मिलित कर लिया गया . अगले दिन सुबह जारी होने वाले बुलेटिन में मैं भी कोई कवित्त रचकर जोड़ देता . कमेटी के सर्वेसर्वा भैया विजयवर्गीय जी थे.

इसी झमेले में आधी रात होने आई तब प्रेमचंद जी उठे और अपनी ब्राउन शेरवानी पर शाल लपेटते हुए मुझसे और लाल चंद जी से बोले :


" आप लोग हैं न , मैं एक बार घर जाकर भोजन कर आता हूं. "


भूखे तो हम भी थे पर डटे रहे कैसाबिआंका की तरह और भैया के लौटकर आने का इंतज़ार करते रहे . वो गए भी , उन्होंने खाना खाने में भी समय लगाया और लौटकर आए तब मेरी और लाल चंद जी की पैरोल शुरु हुई और हम दोनों घरों को चले .

जब रवीन्द्र निवास के मेरे घर के सामने हमारे बिछुड़ने की घडी आई तो बॉस बोले :


" अब क्या करोगे? भोजन होगा तैयार ?"


मैं बोला: " करना क्या है , घर जाकर खिचड़ी बनाऊंगा और खाऊंगा और क्या .....?"

उस दिन मेरे घर में तो कोई भी और नहीं था जो मेरे लिए घर पहुंच कर खाना तैयार मिलाता . इस परिस्थिति के प्रति डाक्टर साब उदासीन कैसे रहते , तुरत बोले :


" ....तो आजाओ मेरे साथ ."


और इस प्रकार उस रात मुझे वो साथ लिवा ले गए .

कहना पडेगा कि उस दिन भाभी जी ने भी मुझे प्रेम से भोजन कराया , आम हिन्दुस्तानी की तरह " बूरा लाओ ", अचार लाओ" ये फरमाइश भी डाक्टर साब ने की . अपनी पेट भराई अच्छे से हो गई पर उसी दिन मैंने डाक्टर साब को " वीर पुरुष " सम्मान से भी नवाजा . मेरा तर्क था :


" आज के जमाने में कोई खाविंद एक तो आधी रात के बाद घर आवे और साथ में एक सितखवुए दोस्त को और ले आवे तो मैं उसे तो ' वीर पुरुष ' ही कहूंगा . "


प्रातःकालीन सभा अनायास स्थगित .

इति.

सुप्रभात .

सुमन्त पंड़्या 

गुलमोहर कैम्प, जयपुर .

26 मई 2015 . 

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अपडेट : 26 मई 2016 .

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गए बरस की सराहना से अभिभूत हूं , ये सहेजने लायक संस्मरण है , इसे ब्लॉग पर भी प्रकाशित करूंगा . अभी हाल के लिए चर्चा के लिए प्रसारित .


-- सुमन्त पंड्या .

   जयपुर 

    26 मई 2016 .

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डाक्टर साब का फ़ोटो सीमा की दीवार से लिया है ।

आज दिन ये संस्मरण दिल्ली से प्रकाशित 

शुक्रवार २६ मई २०१७ ।

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2 comments:

  1. बहुत स्नेहरसभीना संस्मरण है अंकल। एक बार फिर
    मेरा शब्दकोश सम्ऋद्घ हुआ। तुफैल व सितखवुए काम अर्थ बताएं।

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    1. आभार , तुफैल माने ' वजह ' और सितखवुए माने ' मुफ़्तख़ोर ' याने जो बिना कोई श्रम किए खाने आ जावें ।

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