लड़का लड़की भेदाभेद : भिवाड़ी और बनस्थली से स्मृतियों के चलचित्र
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कल की पोस्ट में बात महिमा को लेकर शुरु हुई थी , उसी पर रात तक बात चली . सभी सोचने वाली बातें हैं इन में से कोई निर्णायक अंतिम सत्य नहीं है . सवाल यही है कि घर परिवार , समाज में हम बच्चों को कैसे तैयार करते हैं इसी से उनका नजरिया बनता है और उनकी भूमिका तैयार होती है .
सरकारी स्कूलों बाबत चर्चा बहुत रोचक रही , इस बाबत अलग से पोस्ट लिखूंगा अपने उन अनुभवों को आधार बनाकर जो मैंने छात्र बनकर जुटाए थे.
पिछले हफ्ते दोहितों के लिए आशियाना के स्टोर में ' किंडर जॉय ' खरीदने गया था , मैं बोला :
" दो किंडर जॉय दे देना "
अभि जो काउंटर पर बैठता है और मुझे जानता है , कुछ ऐसे बोला:
" अभी तो लड़कियों वाले हैं , लड़कों वाले शाम को आएंगे तब आपको दूंगा अंकल ."
मेरे लिए यह भी एक नई बात थी कि खाने खेलने की चीजों में भी ये जेंडर भेद है . जाने उसे कैसे पता था कि मुझे कौनसे किंडर जॉय चाहियेंगे .
बाजार भी वही भुनाने में लगा है जो लड़का लड़की भेद हमारे समाज में पाया जाता है .
अब आप ये मत पूछना कि ये "किंडर जॉय" क्या होता है वरना ये वैसा ही सवाल होगा :
"प्यारे मोहन जी नै नी जाणो ?"
मेरी पिछली एक पोस्ट में आया था ये सवाल .
जीवन संगिनी बनस्थली के दिनों को याद कर रही थी तब कुछ बातें याद आईं . मैंने कह दिया था कि हम लोगों के लिए लड़का तो ' तड़ी पार' प्रजाति हुआ करता था , लड़की साथ रहती थी वहीँ पढ़ती थी . अब मैं ऐसे कहता हूं कि लड़का ' एक्सपोर्ट क्वालिटी ' का बनाया जाता था उसे परिसर से बाहर भेजना ही पड़ता था . उसी दौर का एक प्रसंग .
लड़कों के चक्कर में जीवन संगिनी बाहर चली गईं , शायद उदयपुर , घर में रह गए बाप बेटी . उन्हें चिंता थी कैसे पार पड़ेगी . पर सब कुछ ठीक रहा , जो बेटी अपनी मां के सामने कोई काम नहीं करती थी अब मेरी अम्मा बन गई थी . अरी वाह री महिमा * अम्मा की लाड़ली .
समय आने पर ऐसी परीक्षा लड़कों ने भी उत्तीर्ण की ये भी कहना पड़ेगा .
पर वो फिर कभी.....
* Mahima Pandya.
प्रातःकालीन सभास्थगित ,
इति .
समर्थन : Manju Pandya.
सुप्रभात .
सुमन्त
(Sumant Pandya )
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
6 मई 2015 .
दो बरस पुरानी पोस्ट है , आज इसे कर रहे हैं ब्लॉग पर साझा ।
काका नगर , दिल्ली । शनिवार ६ मई २०१७ ।
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