Thursday, 4 May 2017

अनायास मिले जीवन सिंह जी : स्मृतियों के चलचित्र 

अनायास भेंट हुई जीवन सिंह जी से .

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😊😊


" आप जीवन सिंह जी हैं ?"


मेरा सवाल सुनकर उनके चेहरे पर चमक आ जाती है , मान जाते हैं कि वो जीवन सिंह जी हैं , कैसे नहीं मानते मैंने सही पहचाना था . और मैं अपना परिचय थोप देता हूं भले वो मुझे न जान पाए हों पहले प्रयास में 


" मैं सुमन्त पंड्या हूं ."

अब वो मुझे क्या जाने पर फिर भी जब कोई अटकने को बेताब हो तो गहक के मिलना लाजिमी हो जाता है , वही उनके साथ हुआ मिले पर एक प्रश्न के साथ :


" आप ने मुझे पहचाना कैसे ? "

मैं कहने लगा 

" आप को तो मैं दूर से ही देखकर पहचान गया था क्योंकि मैं आपको 2005 से जानता हूं जब आप बनस्थली आए थे , तब प्रोफ़ेसर नवल किशोर भी वहां आए थे और मैं उनकी हाजरी में था , आप भी साथ थे उस आयोजन में , प्रेमचंद की सवा सौ वीं जयंती का आयोजन था हिंदी विभाग वालों का और मेरा कई प्रकार से रिश्ता है हिंदी वालों से ......"


बात के लिए समय बहुत कम था अतः मैंने उनकी फोटो खींची और देखो नए जमाने का चलन उन्होंने भी मोबाइल फोन निकाला और मेरी उतार ले गए .


अभी मुलाक़ात से जुडी और कई बातें छूट रही हैं पर मुझे उठने का नोटिस मिल गया है अतः प्रातःकालीन सभा स्थगित ....

आगे देखेंगे कैसे क्या करना है .

फोटो प्रकाशित करते हुए

सुमन्त पंड्या .

गए बरस की बात है । पहले फ़ेसबुक पर दर्ज किया । आज इसे दर्ज कर रहा हूं दिल्ली में  बैठ कर ब्लॉग पर ।

तकनीकी सहयोग के लिए अक्षर भट्ट की विशेष सराहाना ।

आज एक विशेष निमित्त से दिल्ली में हैं । कुछ उल्लेख आया है और लिखूंग़ा समय निकालकर ।

दिल्ली से सुप्रभात 🌻

शुक्रवार ५ मई २०१७ ।

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