विश्वविद्यालय में वो दिन............ #लप्रेक साझा Manju Pandya
आज एक पुराना प्रसंग याद हो आया , मैं राजस्थान विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग में पढ़ रहा था , जिस विशेष ग्रुप का मैंने वरण किया था वह था गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स । इस ग्रुप का एक पेपर था " गवर्नमेंट एण्ड पॉलिटिक्स ऑफ़ साउथ एशिया " , मिस जेकब ये पेपर पढ़ातीं थीं । कक्षा की संरचना कुछ ऐसी थी कि नौ लडकियां साथ पढ़ती थीं , मैडम पढ़ाने वाली थीं , लड़का प्रजाति का मैं गरीब अकेला था । डिपार्टमेन्ट के भूगोल में रत्नानी बाबू के दफ्तर के कमरे के अंदर से जाकर पीछे एक कमरा था ,उसमे क्लास होती थी । उस दिन मुझे क्या पता था ,कि आगे जाकर मैं एक लड़कियों की शिक्षा के लिए बनी संस्था से ही जुडूंगा ।
उस दिन की बात पर आवूं , मैडम अपनी फिएट कार बाहर खड़ी कर क्लास में चली गयीं , उन्हें जाते हुए मैंने देख लिया , मैडम ने भी मुझे बाहर खड़े देख ही लिया होगा जहां मैं और लड़कों के साथ बातों में मशगूल था ये लडके दूसरे ग्रुप और विषय समूहों के थे जिनसे परिसर की गतिविधियों से जुड़ी एक पत्रिका के संपादक मंडल में होने के नाते मैं जुड़ा हुआ था । नौ की नौ लड़कियां क्लास में पहुंच गयीं , मैडम अपनी सीट पर पहुंच गईं पर मैं नहीँ पहुंचा । यहां मेरी बाते ही पूरी नहीं हो के दे रहीं थीं । उधर मैडम क्लास शुरू नहीं कर रही थीं और मुझे बुलाने को बार बार किसी न किसी लड़की को भेज रही थीं । मैडम बुला रही हैं , मैडम बुला रही हैं , ऐसा मुझे बार बार सुनने को मिला । शायद मैडम का भी वहीँ हिन्दुस्तानी सोच था कि लड़की का तो क्या है , जो होना है हो ही जाएगा , लड़का कुछ पढ़ लिख जाएगा तो कमा खायेगा । जैसे अदालत पहली बार सम्मन भेजती है दूसरी बार वारेंट और तीसरी बार में गिरफ्तारी वारेंट भेज देती है , मैडम ने भी मुझे बुला भेजा था । मुझे उनके सामने जाकर बैठना पड़ा । मैं गया और छात्रा समूह के साथ बैठ गया । तब जो संवाद शुरु हुआ वह कहता हूँ :
~ क्लास में आने का विचार नहीं था तुम्हारा ...?
*जी मैडम ...एन आर एस सी जाना चाहता था......चाय पीने ।
~ तो फिर गए क्यों नहीं , ... यहां क्यों आये ?
* जी मैडम कोई साथ देने वाला नहीं था ... और फिर आपने बुलाया था तो मुझे आना पड़ा ।
~ अब चले जाओ ..... इनमें से किसी को साथ ले जाओ ।
अजीब सी असमंजस की स्थिति थी मेरे लिए , मुझे बुलाया भी और जाने को भी कह दिया पर मैडम के
चहरे पर कोई नाराजगी भी नहीं दीख रही थी । मैं अनायास कह बैठा :
* तो फिर मैडम जैतून @ को भेज दीजिये ।
(@बदला हुआ नाम )
जैतून और मैडम की निगाहें मिली , और मैडम ने कहा :
~ जाओ ।
लड़की उठ खड़ी हुई और हम दोनों चाय पीने चले गए । बाकी बची आठ लडकियां और मैडम ,उस दिन इसके बाद क्लास में हमारे जाने के बाद क्या हुआ या क्या हुआ होगा यह हमारी चिंता का विषय नहीं था । दो मुख्य पात्रों को तो मैडम बाहर भेज देने को स्वयं वचनबद्ध थीं ।
मैं समझ रहा था कि बात हो गई ....आई गई हो गई पर नहीं बातें तो चलती रहती हैं । शायद उसी दिन शाम किसी विशेष निमित्त से आयोजित सभा में विभाग के
थियेटर में एक पर्ची हाथों हाथ घूम रही थी :
There wil be a party tomorrow at N R S C to commemorate the increasing friendship between so & so & so & so ..........
वो प्रस्तावित पार्टी तो परवान नहीं चढ़ पायी , पर हां उस दिन मेरे रुपये दो रुपये जरूर से खर्च हो गए थे जब चाय पीने गया था ।
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आज ये कहानी ( लप्रेक ) भी ब्लॉग पर प्रकाशित .
जयपुर
बुधवार २९ नवम्बर २०१७ .
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